Tuesday 22 August 2017

ग़ज़ल-

ख़ुद को आईने में रह रह कर सँवारा ख़ूब था
यार मेरे तुमने जब मुझको पुकारा ख़ूब था

बस नहीं चल पाया बस दिल पर मेरे दिल का कोई
दिल तुझे देने तलक यूँ तो विचारा ख़ूब था

अब नहीं सुनता कोई भी बात मेरी दिल मेरा
पर तेरा होने से पहले ये भी प्यारा ख़ूब था

तुम मेरी गोदी में लेटी थीं सितारे गिन रहीं
रात के तीजे पहर का वो नज़ारा ख़ूब था

सुब्ह बातें, शाम बातें, बातें सारी दोपहर
डूबकर बातों में तेरी दिन गुज़ारा ख़ूब था

जिस घड़ी था सारी दुनिया ने किनारा कर लिया
प्यार का उस दम तेरे मुझको सहारा ख़ूब था

- के. पी. अनमोल

Monday 21 August 2017

ग़ज़ल-

कुछ परिन्दे अम्न के बैठे शजर पर देखकर
आँखें भर आयीं सुकूं का एक मंज़र देखकर

किस तरह बतलाऊँ मेरे दिल को क्या हासिल हुआ
ख़्वाब में अपने वतन के हाल बेहतर देखकर

सादगी, संजीदगी, दरियादिली, मेहनतकशी
ख़ुश हूँ उसकी शख़्सियत में ऐसे ज़ेवर देखकर

मिन्नतें करता है उसकी, नाज़ उठाता है सभी
है नदी अचरज में ऐसा इक समन्दर देखकर

कर न पाया यह हुनर पैदा में ख़ुद में आज तक
लोग कैसे हैं बदलते रंग अवसर देखकर

शक़्ल, लहजा, मुस्कुराहट और अदाएँ सब तेरी
चौंक उठता हूँ मैं आईने को अक्सर देखकर

दर्ज है अनमोल का भी नाम, बतलाना ज़रा
इश्क़ के स्कूल का तुम यह रजिस्टर देखकर

- के. पी. अनमोल